Wednesday, May 19, 2010

बजरीली जमीन में चटख रंगों की रौनक (जोधपुर यात्रा संस्मरण)

जिंदगी में पहली बार राजस्थान को जानने और समझने का मौका मिला। अवसर था जोधपुर स्थित काजरी में चल रहे एक प्रोजेक्ट पर खबर तैयार करने का। 
व्यस्तता के बीच (11 से 19 मई के बीच एमबीए के पेपर थे) मैंने 13 मई को जोधपुर जाने का निश्चय किया। मंडोर एक्सप्रेस के एसी कोच से मेरी यात्रा दिल्ली से शुरू हुई। यहीं से शुरूआत हुई राजस्थान को समझने और राजस्थान के लोगों को परखने की। अभी तक मेरा राजस्थान का ज्ञान सीमित था। यह सिर्फ हाईस्कूल तक पढ़े गए इतिहास के ज्ञान जितना था। हालांकि पाकिस्तान के साथ लड़ाई के दौरान यहां के राष्ट्रवादियों और देशभक्तों के किस्सों ने मुझे हमेशा प्रभावित किया है।
एसी थर्ड कोच के सीट नंबर 42 पर पहुंचते ही मैंने पाया कि मेरे सहयात्री दो नवविवाहित जोड़े हैं जो जम्मू से लौट रहे हैं। यह दोनों नवयुगल जोधपुर के ही रहने वाले थे। खाने-पीने और रहन-सहन पर पश्चिम का प्रभाव पर बोलने और सोचने में राजस्थान की झलक। फ्यूजन का यह जीता-जागता उदाहरण देखने में अच्छा लगा। मैंने पाया कि पढ़े-लिखे होने के बावजूद अपनी परंपरागत सोच को यह बदल नहीं पाए हैं। खुद को मारवाड़ी जैन बताने वाले इस युगल ने अपनी एक और सहयात्री के साथ बातचीत की शुरूआत उनका गोत्र जानकर शुरू की। यहीं से आप उनकी परिपक्वता और मानसिक विकास का अंदाज लगा सकते हैं।
इस यात्रा के दौरान मैंने पाया कि दिल्ली और यूपी की भीड़-भाड़ वाली जिदंगी से उलट राजस्थान में जनसंख्या घनत्व काफी कम है। दूर-दूर तक सिर्फ जमीन ही जमीन और खेजड़ी के पेड़ दिखाई देते हैं। मकान कई किलोमीटर के अंतर पर हैं। बिजली के आधारभूत संसाधन इन इलाकों में नहीं हैं। हां, संकरी सड़क और रेल का मजबूत नेटवर्क जरूर इस सुनसान जिंदगी की मांग भरता हुआ लगता है।
उत्तर भारत के रेलवे स्टेशनों की धक्का मुक्की और भीड़भाड़ सभी ने झेली होगी। इसके उलट राजस्थान में स्टेशनों पर अंगुली पर गिनने लायक यात्री मिलेंगे। इस सुनसनान बजरीली जमीन पर विकास और मान्यताओं का मिला-जुला असर देखने को मिलता है। घरों पर डिश टीवी का एंटीना और सोलर पैनल जिंदगी की कठिनाइयों से लड़ते हुए लगते हैं। महिलाओं की लाल और अन्य चटख रंगों की धोती उन्हें उत्तर भारत की अन्य महिलाओं से अलग करती है। पुरुष भी चटख रंहो की बड़ी सी पगड़ी पहने इतराते हुए लगते हैं।
पानी की कमी के बावजूद स्टेशन पर कुछ स्वयंसेवक दौड़कर आते हैं और आपकी बोतल या अन्य किसी बर्तन को पीने के पानी से भर देते हैं। यह नजारा भी मुझे राजस्थान में पहली बार देखने को मिला।कम आबादी, बजरीली जमीन और चटख रंगों के इस समन्वय से राजस्थान कुछ अलग ही रौनक देता लगता है।

1 comment:

  1. bahut khoob.. akhbaari shaili ka ye yatra sansmaran jabardast aur rochak hai.. blog world mai apka swagat aur shubkaamnaein sir..

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